Saturday, August 29, 2009

ब्लौगर की कुछ नई बातें

बस अभी मैं यूं ही ब्लौगर के सेटिंग्स में भटक रहा था कि मुझे ब्लौगर के कुछ नये सेटिंग्स के बारे में पता चला.. जिसके बारे में मैं यहां बता रहा हूं.. यह ब्लौगर के पोस्ट को लिखने को लेकर है..

आपको बस इतना करना होगा कि अपने ब्लौगर अकाऊंट के सेटिंग्स के बेसिक्स में जाना होगा और ऊपर दिये गये फोटो जैसे ही अपने सेटिंग्स करने होंगे.. उस तरह के सेटिंग्स करने पर आपको नीचे दिये गये चित्र कि तरह का पोस्ट लिखने वाला टेक्सट बॉक्स मिल जायेगा..


मेरे ख्याल से ब्लौगर के दसवें सालगिरह पर यह भी एक तोहफा उसके उपभोक्ताओं को मिला है.. :)

Thursday, May 28, 2009

आईये जानते हैं कोड कवरेज के बारे में

कुछ इतिहास कोड कवरेज का -
कोड कवरेज सामान्यतः साफ्टवेयर टेस्टिंग का एक छोटा सा हिस्सा माना जाता है, तो वहीं कई टेस्टर इस बात पर मतभेद रखते हैं कि यह डेवेलपमेंट के बाद यूनीट टेस्टिंग, मतलब डेवेलपमेंट का ही एक हिस्सा है..

अगर साफ्वेयर इंजिनियरिंग कि किताब पलटेंगे तो हम पाते हैं कि यह व्हाईट बाक्स टेस्टिंग का एक हिस्सा है.. इस विधा कि खोज सन् 1963 मे हुआ था.. उस जमाने में आजकल के प्रोग्रामिंग भाषा कि तरह कई प्रकार के तकनीकों में विभिन्नता नहीं थी, और इसे सिस्टेमेटिक साफ्टवेयर टेस्टिंग के लिये बनाया गया था..

कोड कवरेज क्या है -
कोड कवरेज कि मदद से हमे पता चलता है कि किसी भी साफ्टवेयर मे प्रयुक्त कितने लाईन सही-सही एग्जक्यूट हो रहे हैं, और जो एग्जक्यूट हो रहे हैं उन लाईनों में किसी प्रकार का एरर या गड़बड़ी तो नहीं है..

इसे इस प्रकार से देखते हैं.. मान लिजिये कि किसी साफ्टवेयर को बनाने में 1000 लाईन कि कोड लिखी गई है.. हम कोड कवरेज के किसी टूल की मदद से यह जानते हैं कि सारे 1000 लाईन ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या नहीं?

अब मान लेते हैं कि कोड कवरेज में 950 लाईन एग्जक्यूट हुये और उनमें कोई गड़बड़ी नहीं है, मगर शेष 50 लाईन जिसे एरर हैंडलिंग के लिये लिखा गया है, वह एग्जक्यूट नहीं हो पाये.. जिस हद तक संभव हो पाता है, उसे भी किसी प्रकार से एग्जक्यूट करने कि कोशिश की जाती है.. मगर आमतौर पर उनकी उपस्थिती को नकार कर छोड़ दिया जाता है..

कोड कवरेज के अलग-अलग प्रकार -
1. फंक्शनल कवरेज - इसमें किसी कोड में प्रयुक्त सभी फंक्शन को एग्जक्यूट किया जाता है..
2. डिसिजन कवरेज - इसमें सभी प्रकार के कंडिशन को जांचा जाता है.. (उदाहरण के तौर पर IF कंडिशन)
3. मॉडिफाईड कवरेज/डिसिजन कवरेज - इसमें सभी प्रकार के कंडिशन के हर पहलू कि जांच की जाती है.. (उदाहरण के तौर पर IF कंडिशन के TRUE/FALSE दोनों ही कंडिशन को जांचा जाता है)
4. स्टेटमेंट कवरेज - इसमें सारे कोड का एग्जक्यूट होना जरूरी होता है..
5. पाथ कवरेज - इसमें प्रोग्राम के सभी संभव रास्तों(Possible Routes) को जांचा जाता है..
6. इंट्री/एग्जिट कवरेज - इसमें प्रोग्राम के सारे इंट्री और एग्जिट वाले रास्तों की जांच की जाती है..

Wednesday, May 27, 2009

क्या मंदी सच में खत्म होने की ओर है?

अभी-अभी 1 घंटे पहले मेरी टीम से तीन लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.. उन्हें कहा गया है कि कल से आने कि कोई जरूरत नहीं है.. अगले महिने का वेतन उन्हें मिल जायेगा.. बस इतना ही.. वैसे तो बहुत पहले से ही इसके आसार नजर आ रहे थे, मगर निर्णय आज लिया गया है..

मेरा प्रश्न यह है कि क्या सच में मंदी खत्म होने की ओर है या फिर बस एक हवा ही तैयार की जा रही है?

Tuesday, May 26, 2009

SDLC क्या है?

कोई भी साफ्टवेयर को पूरा करने में अलग-अलग अवस्था से गुजरना पड़ता है.. जिसे एस.डी.एल.सी.(साफ्टवेयर डेवेलपमेंट लाईफ साईकिल) कहते हैं.. इसमें प्रमुख हैं -

1. साफ्टवेयर कान्सेप्ट - इसमें किसी भी साफ्टवेयर कि जरूरत क्यों है, इसे वर्णित किया जाता है..

2. रीक्वार्मेंट अनालिसिस - इसमें अंत में उस साफ्टवेयर को प्रयोग में लाने वाले यूजर कि जरूरत के बारे में बताया जाता है..

3. आर्किटेकच्ररल डिजाईन - इसमें उस साफ्टवेयर का ब्लू प्रिंट बनाया जाता है, जिसमें पूरे सिस्टम को बनाने से संबंधित जानकारी होती है..

4. कोडिंग और डिबगिंग - किसी भी साफ्टवेयर को बनाने के लिये प्रोग्राम लिखने का काम इस भाग में होता है..

5. सिस्टम टेस्टिंग - इस भाग में पूरे सिस्टम के क्रियाकलापों को जांचा जाता है.. अगर सिस्टम इस चरण में पास नहीं हो पाता है तो उसे वापस कोडिंग और डिबगिंग के लिये भेज दिया जाता है..

कुछ मजेदार तथ्य -
जो व्यक्ति एस.डी.एल.सी. के इन चरणों कि जानकारी नहीं रखते हैं उनके मुताबिक कोडिंग और डिबगिंग किसी भी साफ्टवेयर को बनाने कि प्रक्रिया में लगने वाला सर्वाधिक समय लेता है, जबकी असल में यह आमतौर पर किसी साफ्टवेयर को बनाने कि प्रक्रिया में 25-35% समय ही कोडिंग और डिबगिंग को दिया जाता है.. सर्वाधिक समय अनालिसिस और डिजाईन को दिया जाता है..

Tuesday, April 28, 2009

शैडो रिसोर्स या बिलेबल - एक साफ्टवेयर प्रोफेशनल की व्यथा

आपसे आई.टी.कंपनियों कि सच्चाई की चर्चा करने से पहले मैं आपको आई.टी. प्रोफेशन में प्रयोग में आने वाले इन दो शब्दों कि व्याख्या कर दूं..

बिलेबल रिसोर्स - एक ऐसा कर्मचारी जिसका परिचय क्लाइंट के सामने दिया गया हो और जिसके बारे में क्लाइंट जानता हो कि यह महाशय मेरे लिये काम करते हैं.. क्लाइंट के साथ सारी डील इसी आधार पर होता है कि कितने लोग उसके लिये काम करते हैं और कितने दिनों तक करते रहेंगे..

शैडो रिसोर्स - एक ऐसा कर्मचारी जिसका परिचय क्लाइंट के सामने नहीं दिया गया हो, और वह परदे के पीछे रहकर भी क्लाइंट के लिये काम करता हो..

एक उदाहरण के साथ समझते हैं, इससे कंपनी को फायदा यह होता है कि वह क्लाइंट को दिखाती है कि 3 लोग मिलकर 4 लोगों का काम कर रही है.. जबकी असल में होता यह है कि 3 लोगों को तो क्लाइंट के सामने रखा जाता है और 2 लोग शैडो बनकर काम करते हैं.. मतलब 5 लोग मिलकर 4 लोगों का काम करती होती है.. जबकी कंपनी अपने कर्मचारी को जरूरत से ज्यादा कार्य में निपुण दिखा कर क्लाइंट से अच्छा सौदा करते हैं और बिलकुल नये और तुरत कालेज से पास होकर आये लड़के/लड़कियों को शैडो बना कर, उन्हें बहुत कम पैसे देकर, उनसे भी बिलेबल रिसोर्स जितना ही या कहें तो उससे ज्यादा ही काम लेते हैं..

चलिये शैडो रिसोर्स का एक और नियम बताता हूं.. आमतौर पर हर प्रोजेक्ट और हर टीम में एक शैडो रिसोर्स होता है और यह बात क्लाइंट को भी पता होता है.. और शैडो रिसोर्स उसी को बनाया जाता है जिसके पास अनुभव कम हो और काम करने की क्षमता भी कम ही हो.. अब अगर कंपनी के नियम के मुताबिक देखेंगे तो शैडो रिसोर्स तभी काम करता है जब असली रिसोर्स छुट्टी पर होता है..

अब इसे ऐसे देखते हैं.. एक बिलेबल रिसोर्स पहले दिन ऑफिस आया और अप्ना काम आधा करके आधा अगले दिन के लिये छोड़ दिया.. अगले दिन वह बीमार हो गया और उसने छुट्टी ले ली.. अब अगले दिन शैडो रिसोर्स को वह आधा काम खत्म करना होगा.. अब ऐसे में, एक आधा-अधूरा काम को उसे समझने में ही अधिक समय निकल जाता है और यह नब्बे प्रतिशत संभव है कि वह उस दिन उस काम को खत्म नहीं कर सकता है.. और अगर वह उसे खत्म नहीं करता है तो प्रबंधन का दबाव भी झेलना होता है, जो मेरे हिसाब से कहीं से भी सही नहीं है.. शैडो रिसोर्स हमेशा ही बेचारों सी हालत में रहता है..

मैं खुद भी इसका भुक्तभोगी रह चुका हूं.. यह लेख मैंने मंदी को ध्यान में रखकर नहीं लिखा गया है.. ऐसा हमेशा चलता रहता है, चाहे मंदी हो या ना हो..

Tuesday, April 21, 2009

मंदी की शिकार मेरी एक और मित्र

अभी-अभी मुझे मेरी एक मित्र ने एस.एम.एस. किया कि उसने कल अपना त्यागपत्र दे दिया जिसे आज स्वीकार कर लिया गया.. हम एक साथ ही इस कंपनी में ज्वाईन किये थे और ट्रेनिंग के समय हमारी मित्रता शुरू हुई थी.. मैंने उसे तुरत फोन किया और कारण जानना चाहा.. पहले मुझे लगा था कि शायद उसकी शादी तय हो गई होगी इसलिये वह नौकरी छोड़ रही है, मगर उसने बताया कि वह जिस प्रोजेक्ट में थी वह प्रोजेक्ट बंद हो गया थ और् वह पिछले 2-3 महिने से बेंच पर थी.. जिस कारण वह बेहद डिप्रेशन का शिकार हो गई थी और साथ ही साथ मैनेजमेंट द्वारा उस पर बेवजह का दबाव भी बनाया जा रहा था.. अंततः उसने नौकरी से त्यागपत्र देना ही उचित समझा..

मेरी कंपनी में लोगों को मंदी के कारण निकालने की घटना मैंने अभी तक तो नहीं सुनी है, मगर नौकरी तो जा रही है.. चाहे उसे कोई भी रूप-रंग दे दिया गया हो..

ओरेकल ने सन की कीमत 7.4 बिलीयन डॉलर लगाई

20 अप्रैल कि खबर है यह, जब ओरेकल ने सन माईक्रोसिस्टम को आई.टी. जगत के अब तक के सबसे बड़े सौदों में से एक सौदे में खरीद लिया.. ओरैकल ने सन के प्रत्येक शेयर का भाव $9.50 लगाया है..

अधिक जानकारी के लिये आप इस लिंक पर जा सकते हैं..

आपको याद होगा जब माईक्रोसॉफ्ट ने याहू को खरीदने कि बात की थी तब व्यवसाट जगत में कितना हल्ला-गुल्ला होने के बाद वह सौदा नहीं हो पाया था.. मगर यह कोलैब्रेशन बिना किसी शोर-शराबे के साथ सम्पन्न होकर सभी को चौंका दिया है..

Monday, April 20, 2009

मंदी के दौर में इस्तीफा देने वाले की मानसिक हालात क्या हो सकते हैं?

आज मेरे सामने ही देखते-देखते एक व्यक्ति ने अपना इस्तीफा पकड़ा दिया.. मेरी ही टीम का बंदा था.. उसके पास कोई और विकल्प भी नहीं था जिससे वह खुशी-खुशी अपना इस्तीफा दे सके और कहीं दुसरी जगह अच्छे पद पर जा सके.. बहुत कम बोलने वाले व्यक्ति थे, मगर मुझसे दिल खोल कर बातें किया करते थे.. जब से उन्होंने इस्तीफा दिया है तब से मेरी उनसे कोई बात नहीं हुई है, उनकी लगातार पिछले 6-7 घंटों से मीटींग ही चल रही है एच.आर. वालों के साथ..

मैं तभी से बस यही सोच रहा हूं कि ऐसी आर्थिक मंदी के दौर में जहां किसी के पास कोई और विकल्प नहीं हो, जो बहुत ज्यादा तेज-तर्रार(स्मार्ट) ना हो.. वो किन मानसिक हालातों में नौकरी से त्यागपत्र दे सकता है? कुछ उत्तर तो मैं खुद भी समझ सकता हूं, जैसे उन पर मैनेजमेंट का बहुत ज्यादा दबाव आ रहा था अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिये.. जिसे वह सह नहीं सके होंगे.. बाकी का कुछ पता नहीं.. कहीं यह भी कहीं ना कहीं से आर्थिक मंदी के शिकार होकर ही तो इस्तीफा देकर तो नहीं जा रहे हैं? क्योंकि अगर आर्थिक मंदी का दौर ना होता तो शायद मैनेजमेंट भी उनके ऊपर इतना दबाव कभी नहीं बनाता..

Thursday, April 16, 2009

आई.टी. एवं तकनीक

मेरा यह चिट्ठा काफी समय से निष्क्रीय बना हुआ है.. मैंने कई बार सोचा भी कि इसे सक्रीय करूं मगर समयाभाव और कई बार अन्य कारणों से सोची हुई बातें संभव नहीं हो पाती है और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.. मैं "मेरी छोटी सी दुनिया" पर लिखना नहीं छोड़ सकता, और यदा-कदा "हम बड़े नहीं होंगे, कामिक्स जिंदाबाद" पर भी सक्रीय रहता हूं.. अब ऐसे में लगातार तीन चिट्ठों पर लिखना एक कामकाजी व्यक्ति के लिये असंभव सा ही है..

इस बीच कई अन्य तकनीक से संबंधित चिट्ठों का आगमन हुआ और उन्होंने बहुत बढ़िया काम भी किया, जिसमें से एक आशीष खंडेलवाल जी का चिट्ठा उल्लेखनीय है.. अब ऐसे में जब इस चिट्ठे को भी सक्रीय करना है और साथ ही कुछ अलग भी पेश करना हो तो कुछ अलग लिखना ही होगा.. इसी सोच ने मुझे प्रेरित किया कि इस चिट्ठे के विषय में थोड़ा सा बदलाव कर दिया जाये जिससे यह भी सक्रीय बना रहे..

आगे से आपको इस चिट्ठे पर आई.टी. जगत की व्यवसायिक खबर और व्यक्तिगत अनुभव के साथ ही समय-समय पर तकनीकी ज्ञान भी मिलते रहेंगे.. तो आपका क्या कहना है मेरे इस आईडिया पर? अगर आपके पास भी ऐसे कुछ अनुभव हों तो उसे हमसे बांटना ना भूलें.. :)