कोई भी साफ्टवेयर को पूरा करने में अलग-अलग अवस्था से गुजरना पड़ता है.. जिसे एस.डी.एल.सी.(साफ्टवेयर डेवेलपमेंट लाईफ साईकिल) कहते हैं.. इसमें प्रमुख हैं -
1. साफ्टवेयर कान्सेप्ट - इसमें किसी भी साफ्टवेयर कि जरूरत क्यों है, इसे वर्णित किया जाता है..
2. रीक्वार्मेंट अनालिसिस - इसमें अंत में उस साफ्टवेयर को प्रयोग में लाने वाले यूजर कि जरूरत के बारे में बताया जाता है..
3. आर्किटेकच्ररल डिजाईन - इसमें उस साफ्टवेयर का ब्लू प्रिंट बनाया जाता है, जिसमें पूरे सिस्टम को बनाने से संबंधित जानकारी होती है..
4. कोडिंग और डिबगिंग - किसी भी साफ्टवेयर को बनाने के लिये प्रोग्राम लिखने का काम इस भाग में होता है..
5. सिस्टम टेस्टिंग - इस भाग में पूरे सिस्टम के क्रियाकलापों को जांचा जाता है.. अगर सिस्टम इस चरण में पास नहीं हो पाता है तो उसे वापस कोडिंग और डिबगिंग के लिये भेज दिया जाता है..
कुछ मजेदार तथ्य -
जो व्यक्ति एस.डी.एल.सी. के इन चरणों कि जानकारी नहीं रखते हैं उनके मुताबिक कोडिंग और डिबगिंग किसी भी साफ्टवेयर को बनाने कि प्रक्रिया में लगने वाला सर्वाधिक समय लेता है, जबकी असल में यह आमतौर पर किसी साफ्टवेयर को बनाने कि प्रक्रिया में 25-35% समय ही कोडिंग और डिबगिंग को दिया जाता है.. सर्वाधिक समय अनालिसिस और डिजाईन को दिया जाता है..
10 comments:
ज्ञानबर्धक...
यहां बहुत कम लिखते है? कुछ freq बढायें..
"सर्वाधिक समय अनालिसिस और डिजाईन को दिया जाता है.." डिजाईन तो बताया पर ये अनालिसिस कौनसा चरण है?
Requirement & Analysis is the First step for SDLC
@ Ranjan ji - Anil ji ne aapke savaal ka javaab de diye hain..
@ Anil ji - Thanks :)
एक ज्ञानवर्धक लेख।
धन्यवाद
thanks anil and PD.. being a statistician analysis means little different to me..
बात बिलकुल सही लग रही है। यदि सही विश्लेषण कर डिजाइन तय कर लिया जाए तो बाद का काम बहुत आसान होगा।
ज्ञानवर्धक लेख।
जारी रखिये भइया ..पूरा SAAD यहाँ पढ़ा पायें तो मुझे बहुत खुसी होगी.
@ Lovely - Koshish karte hain ki Adhik se Adhik Software Engineering ke baare me likhen.. Poora SAD likhna mere liye filhal asambhav hi hai, vaise bhi isme bahut kamjor the ham.. :)
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