Tuesday, April 21, 2009

मंदी की शिकार मेरी एक और मित्र

अभी-अभी मुझे मेरी एक मित्र ने एस.एम.एस. किया कि उसने कल अपना त्यागपत्र दे दिया जिसे आज स्वीकार कर लिया गया.. हम एक साथ ही इस कंपनी में ज्वाईन किये थे और ट्रेनिंग के समय हमारी मित्रता शुरू हुई थी.. मैंने उसे तुरत फोन किया और कारण जानना चाहा.. पहले मुझे लगा था कि शायद उसकी शादी तय हो गई होगी इसलिये वह नौकरी छोड़ रही है, मगर उसने बताया कि वह जिस प्रोजेक्ट में थी वह प्रोजेक्ट बंद हो गया थ और् वह पिछले 2-3 महिने से बेंच पर थी.. जिस कारण वह बेहद डिप्रेशन का शिकार हो गई थी और साथ ही साथ मैनेजमेंट द्वारा उस पर बेवजह का दबाव भी बनाया जा रहा था.. अंततः उसने नौकरी से त्यागपत्र देना ही उचित समझा..

मेरी कंपनी में लोगों को मंदी के कारण निकालने की घटना मैंने अभी तक तो नहीं सुनी है, मगर नौकरी तो जा रही है.. चाहे उसे कोई भी रूप-रंग दे दिया गया हो..

10 comments:

सुशील छौक्कर said...

बहुत दुखद। प्रशांत भाई तलवार तो हमारी गर्दन पर भी है। देखो क्या होता है।

अजय कुमार झा said...

pd saahab , mandee kee maar sabko der saber jhelnee hee padegee, haan dekhna ye hai ki kiskaa nambar kab aataa hai

Shiv said...

Dukhad hai. Tumahri dost ko jaldi hi badhiya job mile, yahi kaamna hai.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

आपकी बात सत्य है मन्दी कि यह मार हम सभी को ले डुबेगी।

हमे धैर्य से एवम सुजबुझ से यह नैया पार करनी पडेगी। हमे ही हमारे दोस्तो, रिस्तेदारो को सहयोग देना होगा।

विवेक रस्तोगी said...

तलवार तो आई.टी. में सभी के ऊपर लटकी हुई है और प्रबंधन भी दबाव बड़ाता जा रहा है, यह बहुत ही कठिन समय है, सभी को समझदारी से यह समय निकालना चाहिये और अपने परिवार को ध्यान में रखकर किसी भी परिस्थिती में त्यागपत्र नहीं देना चाहिये। क्योंकि प्रबंधन का दबाव तो झेल सकते हैं पर बेरोजगार होने के बाद परिवार में तनाव और भी बहुत सारी बातों का दबाव झेल पाना बहुत मुश्किल है।

विवेक रस्तोगी said...

तलवार तो आई.टी. में सभी के ऊपर लटकी हुई है और प्रबंधन भी दबाव बड़ाता जा रहा है, यह बहुत ही कठिन समय है, सभी को समझदारी से यह समय निकालना चाहिये और अपने परिवार को ध्यान में रखकर किसी भी परिस्थिती में त्यागपत्र नहीं देना चाहिये। क्योंकि प्रबंधन का दबाव तो झेल सकते हैं पर बेरोजगार होने के बाद परिवार में तनाव और भी बहुत सारी बातों का दबाव झेल पाना बहुत मुश्किल है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

कर्मचारियों की छंटनी का एक बड़ा हिस्सा त्यागपत्र के रुप में सामने आता है।

Anonymous said...

प्रशांत जी, आप गेंद को जितनी तेज़ी से ऊपर उछालेंगे, वह उतनी ही तेज़ी से नीचे गिरेगी, यह तो सिद्ध किया गया नियम है। यह जो मंदी चल रही है यह बुरी नही, यह तो बिगड़ रही स्तिथियों को सुधारने का एक स्व नियंत्रित तरीका है। सोचिये जिस रफ़्तार से दुनिया भर में उछाल आ रहा था, कब तक संभल पाता। मामूली फ्लैट के लिए लाखों रुपये लोन लेना या हजारों रुपये किराया देना, स्टॉक का बाजार भाव इतना अधिक होना जितना उसका वास्तविक दाम भी नही, यह सब तो ठीक नही हो रहा था। हाँ इस चक्र में कई मासूमों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा या अन्य तरीकों से भुगतना पड़ा, सिर्फ़ इसी बात का मुझे दुःख है।

अनिल कान्त said...

I.T. वालों के साथ ही कुछ जयादा होता है हर ३-४ साल बाद ...जब जब मंदी आती है ...I.T. वालों के बाजे बज जाते हैं

Anil Kumar said...

मैं भी बेरोजगार हो गया :(